Rama-Lakshmana duo of Indian art (Hindi) | भारतीय कला की राम-लक्ष्मण की जोड़ी

 राजा राजा वर्मा, यह नाम कला इतिहासकारों, कला समीक्षकों तथा कुछ कलाकारों के अलावा ज़्यादातर लोग संक्षिप्त में नहीं जानते होंगे| रवि वर्मा की जीवनी पढ़ते वक्त उनके निजी जीवन के बारे में ज़्यादा दिखाई भी नहीं पड़ता| राजा वर्मा (रवि वर्मा के छोटे भाई), जिनका उनके जीवन में बड़ा प्रभाव रहा उनके बारे में भी कम ही देखने मिलता है| मगर हम जब भी पश्चिमी चित्रकारों की बात करें तो उन पर लिखा साहित्य, फिल्में, डॉक्यूमेंट्री, आदि संक्षिप्त में बनी मिलती हैं| उत्तर-प्रभाववादी डच चित्रकार विन्सेंट वैन गॉघ की जीवनी पढ़ते वक्त उनके निजी तथा पारिवारिक संबंधों के बारे में काफी पढ़ने मिलता है, उसमे भी अहम् तौर पर उनके जीवन में उनके छोटे भाई थिओ के योगदान के बारे में निश्चिन्त ही| पश्चिमी देशों में दस्तावेजीकरण का हमेशा से ही बहुत महत्त्व रहा है| जब रवि वर्मा कार्यरत थे, तब भारत अंग्रेजों का गुलाम था, हमारे अपने संघर्ष थे| एक तरफ रियासतें अपना स्वतंत्र स्थान रखे हुए थीं, तो दूसरे तरफ ब्रिटिश राज नए पैंतरे अपना कर कॉलोनी बने भारत का शोशण कर रहा था| तीसरी  तरफ इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना के बाद भारतीय बुद्धिजीवि उनके तरफ का राजकीय पक्ष रखना शुरू कर चुके थे| ऐसे में महान ही सही मगर एक चित्रकार पर दस्तावेजीकरण करना असाधारण सा था|

राजा रवि वर्मा और छोटे भाई राजा राजा वर्मा 

 Picture courtesy: Raja Ravi Varma-Portrait of an artist 

                (Diary of C. Raja Raja Varma)

१९०६ में, रवि वर्मा के मरणोपरांत तो स्वतंत्रता संग्राम अपनी चरम सीमा पर पहुँचने की तैयारी कर रहा था| आज़ादी के निकट आते आते देश के कला क्षेत्र में एक आधुनिक संचलन शुरू हो चूका था| ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप’ के चित्रकार अभिव्यक्तिवाद तथा अमूर्तवाद जैसी ज्वलंत कला शैलियों से देश तथा विदेश में चर्चा का विषय बन चुके थे| इन चार-पांच दशकों के दौरान राजा रवि वर्मा की छवि कहीं धुंधली पड़ती जा रही थी| कुछ दशकों बाद कला इतिहासकारों और समीक्षकों के प्रयास ने रवि वर्मा तथा उनके  भारतीय कला में योगदान पर रौशनी डालनी चाही| अनुसन्धान के दौरान देश की रियासतों के वंशों के पास उनके चित्र तथा कुछ परंपरागत किस्से, रवि वर्मा के वंश, किलिमानूर का पुस्तकालय, आदि पर्याप्त नहीं थे| यथार्थपूर्ण प्रमाणों की ज़रूरत थी और ऐसा ही एक दस्तावेज सामने आया - छोटे भाई सी. राजा राजा वर्मा की डायरी| वे हमेशा बड़े भाई के सहायक के रूप में उनके साथ रहे तथा उनके सामाजिक और कलात्मक सफर के किस्सों को दैनिक तौर पर डायरी में लिखते रहे| यह डायरी रवि वर्मा के जीवन को और भी संखिप्त रूप में जानने में हमारी मदत करती है|

हम यह तो जानते है की छोटे भाई राजा वर्मा भी एक अद्भुत चित्रकार थे| मामा और बड़े भाई के सहवास में रहकर चित्रकारिता अच्छे से समझते थे| रवि वर्मा के चित्रों की पार्श्वभूमि रंगने के अलावा वे स्वयं स्वतंत्र रूप से चित्र भी बनाते| उनकी रूचि निसर्गचित्र के प्रति ज़्यादा रहती| १९ वी सदी में निसर्गचित्र को उसी स्थल पर रहकर कैनवास पर उतारना कुछ असामान्य सा था, और राजा वर्मा इसमें माहिर थे| उनके निसर्गचित्र प्रभाववादी शैली में किये हुए होते| वे चित्र में वातावरण निर्मिति पर ज़्यादा महत्व देते| उनके चित्र कईं राष्ट्रिय तथा अंतराष्ट्रीय प्रदर्शनों में प्रदर्शित हुए, कुछ में उन्होंने पुरस्कार भी प्राप्त किये थे| रवि वर्मा के चित्रों को उस समय विलासिता का प्रतिक माना जाता था| रवि वर्मा की चित्रों के कोने लिखी दस्तखत रईसों के लिए  दर्जे का चिन्ह बन चुकी थी| हर रियासत के महाराजा को रवि वर्मा द्वारा अपना चित्र बनवाने की मानो ज़रूरत सी पड़ गयी थी| रवि वर्मा का नाम भारत के सबसे प्रतिष्ठित चित्रकार के रूप में लिया जाता, और रियासतें उनको अपने यहां उनके व्यक्तिचित्र बनाने हेतु बुलाया करते| वर्मा भाई कईं हफ़्तों तक महाराजाओं के मेहमान बनकर वह कार्य पूर्ण करते| उस दौरान वर्मा भाई उस रियासत का भ्रमण करते, शाही परिवारों से मिलते, वास्तव-आकर का व्यक्तिचित्र हो तो शरीर का नाप लिया जाता, रचना के उनके फोटो निकाले जाते| प्रायोगिक चित्र बनाये जाते और ज़्यादा तर काम सामने बिठा कर किया जाता|

 यात्रा संबंधी ब्यौरा रखना, चित्रों की पार्श्वभूमि को रंगना, वित्त संबंधी व्यवहारों का ध्यान रखना, रवि वर्मा प्रिंटिंग प्रेस के व्यहवारों के लेन-देन का हिसाब रखना तथा वहां के कार्य की निगरानी रखना, पत्र व्यहवार करना, आदि यह काम छोटे भाई राजा नियमित रूप से करते| इन्ही कारणों के चलते निसर्गचित्र में और ज़्यादा गंभीर तौर पर अध्ययन करना उनके लिए मुश्किल था| कहीं कहीं भाई रवि की ख्याति और वर्चस्व देख, राजा वर्मा ने उन्हीं के छाया तले काम करना चुना| वे रवि वर्मा की छवि और चित्रकारिता का स्तर ऊपर रहे उसी के लिए जूझते रहे| अपना स्वयं का असाधारण कौशल होने के बावजूद बड़े भाई की प्रतिछाया में रहे| राजा वर्मा ने लक्ष्मण के भाँती अपने राम (रवि वर्मा) के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया था|

राजा वर्मा की डायरी को गौर से पढ़ते हैं तो ज्ञात होता है की वे दैनिन्दिनी को व्यक्तिगत रूप से नहीं लिख रहे थे| वे भाई  रवि के साथ कलात्मक प्रवास में भारतभ्रमण दौरान होने वाली चीज़ों को दैनिक तौर पर लिख रहे थे| डायरी की नोंद सिर्फ व्यवसायी तौर पर होकर कईं बार सफर के दौरान हुए किस्से, स्वास्थ के बारे में, महाराजाओं-दीवान तथा किलिमानूर में परिवार से किये पत्र व्यहवार की भी नोंद मिलती है| कभी-कभी चित्रों के लिए मिले मुआवजे का जिक्र भी किया गया है| वर्मा भाई बॉम्बे के आधुनिक जीवन से काफी घुल-मिल चुके थे| वहां के कुछ पारसी और गुजराती व्यापारी, अभिजात तथा सियासी हस्तियों के साथ के संबंधों बारे में भी डायरी में पढ़ने मिलता है| वर्मा भाई बहुत ही धार्मिक परिवार से थे इसलिए भारतभ्रमण के दौरान धार्मिक स्थलों तथा मंदिरों में निश्चिन्त जाते| डायरी में कईं बार पढ़ने मिलता है की वे धार्मिक स्थलों की पवित्र नदी में स्नान करने जाते| एक बार एक अटपटे किस्से का जिक्र देखने मिलता है, वे लिखते हैं की किसी अभिजात रियासत में व्यक्ति चित्र की बैठक के दौरान एक महिला ने ऐसी साडी पहनने का हट्ट किया जो रंगने में बहुत ही ज़्यादा कठिन थी|

 एक नोंद ऐसी भी मिलती है जहां राजा वर्मा निसर्गचित्र करने गए स्थल का वर्णन करते हैं, वर्णन संक्षिप्त में था. इससे पता चलता है की वे निसर्गचित्र करते वक्त निरिक्षण गंभीर रूप से करते थे| और वह गहराई उनके निसर्गचित्रों में भी पूर्णतया दिखाई तथा महसूस होती है| वे जिस प्रभाववादी शैली में काम करते, वह उस समय ज़्यादा नहीं दिखाई पड़ती| भाई रवि वर्मा अपने अंतिम वर्षों में उतने सक्रीय नहीं थे जितना वे अपने चरम पर हुआ करते. १९०० के बाद तो राजा वर्मा स्वतंत्र रूप से कला क्षेत्र में जाने जाने लगे थे| ४५ वर्ष के अधेड़ उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गयी. अगर वे रवि वर्मा के मरणोपरांत जीवंत रहते तो शायद व्यक्तिगत रूप से अधिक जाने जाते और शायद भारतीय प्रभाववादी शैली के जनक कहलाते|

शाही और अभिजात रियासतों के लिए भव्य चित्रों के कारण रवि वर्मा प्रसिद्ध थे ही| देवी देवताओं को उन्होंने मानव रूप देकर आम लोगों के और निकट ला दिया था| देवी देवताओं के चित्रों की स्वस्त प्रतियां लोगों के घरों के मंदिरों में श्रद्धा का स्थान बन चुकी थी| उस समय कईं उत्पादों के विज्ञापनों पर भी रवि वर्मा के चित्रों की प्रति इस्तमाल की जाने लगी थी| राजा वर्मा को यह ज्ञात था की उनके भाई जाने-अनजाने भारत के हर एक व्यक्ति के दिल में बस चुके थे| समय की मांग और रवि वर्मा की अनुपम कलाकारिता को देख छोटे भाई राजा ने उस भव्य बरगद के पेड़(रवि वर्मा) तले खिलना चुना| रवि वर्मा की इस रामायण में उनके वनवास (भारतभ्रमण) में छोटे भाई राजा ने लक्ष्मण की भूमिका बखूबी निष्ठापूर्वक निभायी| राजा राजा वर्मा आज अपने अद्भुत निसर्गचित्रों के रूप में, सदी के सबसे बड़े चित्रकार के सहायक के रूप में, तथा रवि वर्मा के जीवन को नज़दीक से देखने हेतु मिली डायरी के रूप में सदैव याद रहेंगे.

राजा वर्मा मॉडल की मदत से चित्र बनाते हुए तथा रवि वर्मा एक चित्र में काम करते हुए, बॉम्बे के स्टूडियो से 

 Picture courtesy: Raja Ravi Varma-Portrait of an artist 

                (Diary of C. Raja Raja Varma)


 

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